शुक्रवार, 8 अक्तूबर 2021

नार्को टेस्ट (Narco Test) क्या है?

 नार्को टेस्ट (Narco Test) क्या है?


समाचारों में क्यों?


उत्तर प्रदेश सरकार हाथरस बलात्कार और हत्या पीड़िता के परिवार के सदस्यों का नार्को टेस्ट करने की योजना बना रही है।


इससे सम्बंधित चिंताएँ:


“समाज के कमजोर वर्गों के व्यक्ति, जो अपने मौलिक अधिकारों से अनभिज्ञ हैं और कानूनी सलाह लेने में असमर्थ हैं” पर ऐसे परीक्षणों के परिणाम विनाशकारी हो सकते हैं।


● इसमें भविष्य में दुर्व्यवहार, उत्पीड़न और निगरानी जैसे मामले शामिल हो सकते है, यहां तक   कि मीडिया द्वारा परीक्षण के लिए वीडियो सामग्री का दुरूपयोग भी किया जा सकता है।


● इस प्रकार के परीक्षण मानवीय गरिमा और स्वतंत्रता का अपमान हैं, एवं इनके दूरगामी प्रभाव होते हैं।


नार्को टेस्ट क्या है?


नार्को टेस्ट में सोडियम पेंटोथल नामक दवा का इंजेक्शन दिया जाता है, जो एक कृत्रिम निद्रावस्था या बेहोशी की अवस्था को प्रेरित करता है। इससे सम्बंधित व्यक्ति की कल्पना-शक्ति बेअसर हो जाती है, और यह आशा की जाती है की वह सत्य जानकारी उपलब्ध कराएगा/ कराएगी।


● इस संदर्भ में “सच का प्याला” (ट्रुथ सीरम) के रूप में संदर्भित दवा का उपयोग सर्जरी के दौरान निश्चेतना के लिए बड़ी खुराक में किया जाता था एवं ऐसा कहा जाता है कि इसका उपयोग द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान खुफिया अभियानों के लिए भी किया जाता था।


यह पॉलीग्राफ परीक्षण से भिन्न कैसे है?


एक पॉलीग्राफ परीक्षण इस धारणा पर आधारित है कि किसी व्यक्ति द्वारा झूठ बोलने के दौरान उत्पन्न शारीरिक प्रतिक्रियाएं, सामान्य परिस्थितियों में उत्पन्न शारीरिक प्रतिक्रियाओं से भिन्न होती हैं।


● कार्डियो-कफ (cardio-cuffs) अथवा संवेदनशील इलेक्ट्रोड जैसे उपकरणों को व्यक्ति के शरीर से जोड़ा जाता है और उनसे प्रश्न पूछे जाते समय कुछ विशेष परिवर्तनशील तथ्यों जैसे कि रक्तचाप, नाड़ी-स्फुरण, श्वसन, पसीने की ग्रंथि की गतिविधि में परिवर्तन, रक्त प्रवाह, आदि को मापा जाता है।


● प्रत्येक प्रतिक्रिया के लिए एक संख्यात्मक मान निर्धारित किया जाता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि क्या व्यक्ति सच बोल रहा है, झूठ बोल रहा है अथवा अनिश्चित है।


क्या भारतीय जांचकर्ताओं को यह अनुमति है कि वे संदिग्धों पर इन परीक्षणों को कर सकें?


सेल्वी बनाम कर्नाटक राज्य (2010) मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला दिया था कि “अभियुक्त की सहमति के आधार पर किये गए परीक्षणों के अतिरिक्त” किसी भी प्रकार के लाई डिटेक्टर परीक्षण नहीं किये जाने चाहिए।


● यह भी कहा गया कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा 2000 में प्रकाशित “एक अभियुक्त पर किये जाने वाले पॉलिग्राफ परीक्षण से सम्बंधित दिशानिर्देशों” का कड़ाई से पालन किया जाना चाहिए।


न्यायालय ने मानवाधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय मानदंडों, निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार और संविधान के अनुच्छेद 20 (3) के अंतर्गत आत्म-अभिसंशन के विरुद्ध अधिकार को ध्यान में रखते हुए यह निर्णय दिया था।

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