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शुक्रवार, 8 अक्टूबर 2021

संघ लोक सेवा आयोग (Union Public Service Commission (UPSC)

संघ लोक सेवा आयोग (Union Public Service Commission (UPSC)

संघ लोक सेवा आयोग स्थापना दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं


संघ लोक सेवा आयोग (Union Public Service Commission (UPSC)- यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन), भारत के संविधान द्वारा स्थापित एक संवैधानिक निकाय है जो भारत सरकार के लोकसेवा के पदाधिकारियों की नियुक्ति के लिए परीक्षाओं का संचालन करता है। संविधान के भाग-14 के अंतर्गत अनुच्छेद 315-323 में एक संघीय लोक सेवा आयोग और राज्यों के लिए राज्य लोक सेवा आयोग के गठन का प्रावधान है।

संक्षेपाक्षर - यू. पी. एस. सी.

स्थापना - अक्टूबर 1, 1926

स्थान - धौलपुर हाउस, शाहजहाँ रोड,

नयी दिल्ली - 110001

क्षेत्र  - भारत

अध्यक्ष - प्रदीप कुमार जोशी

जालस्थल (Website) - upsc.gov.in

इतिहास:

भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान राष्ट्रवादियों की एक प्रमुख मांग थी कि लोक सेवा आयोग में भर्ती भारत में हो, क्योंकि तब इसकी परीक्षा इंग्लैंड में हुआ करती थी। प्रथम लोक सेवा आयोग की स्थापना अक्तूबर 1926 को हुई। भारत के स्वतंत्र होने पर संवैधानिक प्रावधानों के तहत 26 अक्तूबर 1950 को लोक आयोग की स्थापना हुई। इसे संवैधानिक दर्जा देने के साथ-साथ स्वायत्तता भी प्रदान की गयी ताकि यह बिना किसी दबाव के योग्य अधिकारियों की भर्ती क़र सके। इस नव स्थापित लोक सेवा आयोग को 'संघ लोक सेवा आयोग' नाम दिया गया।

सन 1919 में तत्कालीन अंग्रेजी शासकों ने भारत के लिये स्वायत्त शासन की आवश्यकता स्वीकार की। 5 मार्च 1919 के भारतीय वैधानिक सुधार विषयक प्रथम प्रेषणापत्र में कहा गया :


अधिकतर राज्यों में, जहाँ स्वायत शासन की स्थापना हो चुकी हैं, इस बात की आवश्यकता अनुभूत की जाती हैं कि सार्वजनिक सेवाओं को राजनीतिक प्रभावों से सुरक्षित रखना चाहिए और उसके हेतु एक ऐसा स्थायी कार्यालय स्थापित किया गया है जो विविध सेवाओं का नियंत्रण करता है। हम लोग इस समय भारत में ऐसे सार्वजनिक सेवा आयोग की स्थापना के लिये उद्यत नहीं हैं, परंतु हम देख रहे हैं कि ये सेवाएँ, क्रम से, अधिकाधिक मंत्रियों के नियंत्रण में आती जाएँगी, जिसके कारण यह उचित है कि इस प्रकार की संस्था का आरंभ किया जाय।


1919 के भारतीय शासन विधान में इस भावना की व्यावहारिक अभिव्यक्ति मिलती है। उसमें एक सार्वजनिक सेवा आयोग की स्थापना का विधान था जिसकी सेवाओं के लिये पदाधिकारियों की भर्ती, भारत की सार्वजनिक सेवाओं का नियंत्रण तथा ऐसे अन्य कर्त्तव्य होंगे जिनका निर्देश सपरिषद भारत सचिव करेंगे। परंतु उस आयोग की स्थापना तत्काल नहीं हुई। 1923 में, लॉर्ड ली के नेतृत्व में, एक रॉयल कमिशन नियुक्त हुआ, जिसको भारत उच्च सेवाओं के ऊपर विचार एवं विवरण प्रस्तुत करना था। उस कमिशन ने, अपने 27 मार्च 1924 के विवरण में, तत्काल उस लोक सेवा आयोग की स्थापना की आवश्यकता पर विशेष बल दिया, जिसका 1919 के विधान में संकेत किया गया था। 

प्रस्ताव था कि उक्त आयोग के निम्नलिखित चार मुख्य कार्य होंगे:


(1) सार्वजनिक सेवाओं के लिये कर्मचारियों की भर्ती,

(2) सेवाओं में प्रविष्ट होनेवाले व्यक्तियों की योग्यताओं का विधान तथा उचित मान स्थिर करना,

(3) सेवाओं के अधिकारों की सुरक्षा करना तथा नियंत्रण एवं अनुशासन की व्यवस्था करना, जो लगभग न्यायविधान की कोटि का कार्य है।

(4) सामान्य रूप से सेवा संबंधी समस्याओं पर परामर्श एवं अनुमति देना।


उस लोकसेवा आयोग की स्थापना 1926 के अक्टूबर मास में हुई। एक नियमावली बनाई गई जिसमें इस बात का विधान था कि अखिल भारत की प्रथम और द्वितीय श्रेणियों की सेवाओं के, उन प्रतियोगिता परीक्षाओं के पाठ्यक्रमों के निर्धारण जिनके द्वारा कर्मचारियों का निर्वाचन हो, उक्त सेवाओं के लिये पदोन्नति, अनुशासनीय कार्य, वेतन, भत्ते, पेंशन, प्रॉविडेंट फंड एवं पारिवारिक पेंशन विषय आदि मामलों में सरकार उससे परामर्श ले। किसी मिसी वर्ग विशेष या सभी सेवाओं के नियमाधार तथा छुट्टी आदि के नियमों के प्रश्नों पर भी सरकार उक्त आयोग से परामर्श करेगी।


उक्त नियमावली में आयोग के लिये जो नियम निर्दिष्ट किए गए थे उनका सुधार तथा स्थायीकरण उसे श्वेतपत्र के द्वारा हुआ जिसमें वैघानिक सुधारों के लिये ऐसे प्रस्ताव थे जिनके अनुसार प्रत्येक सूबे के लिये भी आयोगों की स्थापना करने का विधान था। उन सभी प्रतियोगिता परीक्षाओं की वयवस्था करना जिनके द्वारा पदाधिकारियों का चुनाव हो, केंद्रीय तथा सूबे के आयोगों का कर्त्तव्य बतलाया गया। सरकार को आयोगों से इसका भी परामर्श करना था कि सेवाओं के लिये, किस प्रकार चुनाव के द्वारा नियुक्ति हो, पदोन्नति कैसे किए जाएँ, एक विभाग से दूसरे विभाग में स्थानांतरण कैसे किए जाएँ, आदि।


उक्त श्वेतपत्र में यह प्रस्ताव भी किया गया था कि सरकार को आयोगों से भिन्न विषयों पर भी परामर्श लेना चाहिए:


  • (क) अनुशासनीय कार्य,
  • (ख) यदि किसी पदाधिकारी के विरूद्व कोई अभियोग चलाया गया हो तो उसके रक्षाविषयक व्यय की सरकार द्वारा पूर्ति।
  • (ग) समय समय के अधिनियमों के अनुसार उठे हुए अन्य प्रश्न।


1935 के भारतीय विधान के परिच्छेद 266 में, उपर्युक्त प्रस्तावों को स्थायी रूप दिया गया। उसमें लोक सेवा आयोगों के कर्त्तव्यों को स्पष्ट रूप से निर्धारित कर दिया गया। यह कहा जा सकता है कि उक्त विधान के द्वारा ही आयोगों की अंतिम एवं स्थायी रूप में रचना की गई थी। आज के केंद्रीय अथवा राज्यों के आयोग का संगठन, रूप एवं आधार, सब उसी पर अवलंबित हैं।


स्वतंत्रता के बाद, संविधान सभा ने अनुभव किया कि सिविल सेवाओं में निष्पक्ष भर्ती सुनिश्चित करने के साथ ही सेवा हितों की रक्षा के लिए संघीय एवं प्रांतीय, दोनों स्तरों पर लोक सेवा आयोगों को एक सुदृढ़ और स्वायत्त स्थिति प्रदान करने की आवश्यकता महसूस की गई।

सदस्य

आयोग के सदस्य राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त होते हैं। कम से कम आधे सदस्य किसी लोक सेवा के सदस्य (कार्यरत या अवकाशप्राप्त) होते हैं जो न्यूनतम 10 वर्षों के अनुभवप्राप्त हों। इनका कार्यकाल 6 वर्षों या 65 वर्ष की उम्र (जो भी पहले आए) तक का होगा। ये कभी भी अपना इस्तीफ़ा राष्ट्रपति को दे सकते हैं। इससे पहले राष्ट्रपति इन्हें पद की अवमानना या अवैध कार्यों में लिप्त होने के लिए बर्ख़ास्त कर सकता है।

कार्य

इसका प्रमुख कार्य केन्द्र तथा राज्यों की लोकसेवा के लिए सदस्यों का चयन करना है। इसके लिए यह विभिन्न परीक्षाएं संचालित करती है। इनमें से प्रमुख हैं -


1. सिविल सेवा (प्रारंभिक) परीक्षा (मई में)


2. सिविल सेवा (प्रधान) परीक्षा (अक्टूबर/नवम्बर में)


3. भारतीय वन सेवा परीक्षा (जुलाई में)


4. भारतीय इंजीनियरी सेवा परीक्षा (जुलाई में)


5. भू-विज्ञानी परीक्षा (दिसम्बर में)


6. स्पेशल क्लास रेलवे अप्रेंटिसेज़ परीक्षा (अगस्त में)


7. राष्ट्रीय रक्षा अकादमी और नौसेना अकादमी परीक्षा (अप्रैल और सितम्बर में)


8. सम्मिलित रक्षा सेवा परीक्षा (मई और अक्टूबर में)


9. सम्मिलित चिकित्सा सेवा परीक्षा (फरवरी में)


10. भारतीय अर्थ सेवा/भारतीय सांख्यिकी सेवा परीक्षा (सितम्बर में)


11. अनुभाग अधिकारी/आशुलिपिक (ग्रेड ख/ग्रेड 1) सीमित विभागीय प्रतियोगिता परीक्षा (दिसम्बर में)


इसके अतिरिक्त राज्य लोक सेवा के अधिकारियों को संघ लोक सेवा से अधिकारी के रूप में भर्ती करना, भर्ती के नियम बनाना, विभागीय पदोन्नति समितियों का आयोजन करना, भारत के राष्ट्रपति द्वारा निर्दिष्ट कोई अन्य मामला सुलझाना इत्यादि इसके प्रमुख कार्य हैं।


संघ लोक सेवा आयोग - एक परिचय (UPSC - An Introduction)


यनियन पब्लिक सर्विस कमीशन

सिविल सेवा व सिविल सेवा परीक्षा

ऐतिहासिक पृष्टभूमि: 

भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के दौरान राष्ट्रवादियों ने जो राजनीतिक आन्दोलन चलाया उसकी एक प्रमुख मांग थी कि लोक सेवा आयोग में भर्ती भारत में हो, क्योंकि तब इसकी परीक्षा इंग्लैंड में हुआ करती थी। प्रथम लोक सेवा आयोग की स्थापना अक्तूबर 1926 को हुई। आज़ादी के बाद संवैधानिक प्रावधानों के तहत 26 अक्तूबर 1950 को लोक आयोग की स्थापना हुई। इसे संवैधानिक दर्जा देने के साथ साथ स्वायत्ता भी प्रदान की गयी ताकि यह बिना किसी दबाव के योग्य अधिकारियों की भर्ती क़र सके। इस नव स्थापित लोक सेवा आयोग को संघ लोक सेवा आयोग नाम दिया गया।


संवैधानिक प्रावधान: 

यह एक संवैधानिक संस्था है क्योकि इसकी स्थापना संविधान के अनुछेद 315 के अंतर्गत हुई है। सामान्यता आयोग में अध्यक्ष सहित 9 से 11 सदस्य होते है, संघ लोक सेवा आयोग सिविल सेवको की भर्ती के लिए मुख्य संस्था है जो केन्द्र एवं केन्द्र शासित प्रदेशो में विभिन्न प्रशासनिक परीक्षाओं का आयोजन करता है।


आयोग विभिन्न सेवाओ के लिए लगभग दर्जन भर परीक्षाओ का आयोजन करता है, जैसे अभियांत्रिकी, चिकित्सा, वन सेवा आदि।

  • भारतीय अभियांत्रिकी सेवा
  • भारतीय आर्थिक और सांख्यिकी सेवा
  • भूगर्भ सेवा
  • विशिष्ट श्रेणी रेलवे प्रशिक्षु सेवा
  • संयुक्त चिकित्सा सेवा
  • केंद्रीय पुलिस सेवा
  • संयुक्त रक्षा सेवा .
  • राष्टीय रक्षा सेवा

वर्तमान में संघ लोक सेवा आयोग सिविल सेवा परीक्षाओ के माध्यम से 24 सेवाओ के लिए अभ्यर्थियों का चुनाव करता है इसमें से सबसे चर्चित भारतीय प्रशासिनिक, भारतीय पुलिस सेवा व भारतीय राजस्व सेवा हैं।


अखिल भारतीय सेवा: 

भारतीय प्रशासनिक सेवा, भारतीय पुलिस सेवा एवं भारतीय वन सेवायें ही अखिल भारतीय सेवा कही जाती है। जबकि, अन्य जैसे - भारतीय राजस्व सेवा व सूचना सेवाओं को केंद्रीय सेवा कहा जाता है। इन सेवाओं की भर्ती एव प्रशिक्षण का कार्यक्रम संघ सरकार करती ह जबकि अखिल भारतीय सेवा संघ तथा राज्य दोनों स्थानों पर अपनी सेवाएँ देती हैं। इनके सेवाओं के अधिकारियों के कार्य मुख्यत: लिखित से ज्यादा अलिखित है, जिसमें सरकारी नीतियों का क्रियान्वयन, कानूनी प्रशासन इत्यादि हैं।


भारतीय प्रशासनिक सेवा: 

यह सभी अखिल भारतीय सेवाओं में सर्वोच्च स्थान रखती है। तकरीबन १००० रिक्तियों के लिये चयनित अभ्यर्थी आई०ए०एस० अधिकारी जो कि केन्द्रों एवं राज्यों में कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य करते है। नियुक्ति के पश्चात इन्हें अनुमंडल या जिलों में नियुक्त किया जाता है और पदोन्नति के चलते ये राज्यों में विभागीय सचिव व केन्द्रों में कैबिनेट सचिव तक के पदों पर कार्य करते है। नोट: कैबिनेट सचिव सम्पूर्ण भारतीय प्रशासनिक व्यवस्था का सबसे वरिष्ट अधिकारी होता है।


भारतीय पुलिस सेवा: यह सेवा अखिल भारतीय सेवाओं के अन्तर्गत आती है। चयनित अभ्यार्थियों की नियुक्ति तथा ज़िला पुलिस अधीक्षक के कार्यालय में दो वर्ष की ट्रेनिंग के पश्चात उन्हें सहायक पुलिस अधीक्षक के रूप में नियुक्त किया जाता है। पदोन्नति क्रमानुसार:- पुलिस अधीक्षक, वरिष्ट पुलिस अधीक्षक, उप महानिरीक्षक, पुलिस महानिरीक्षक तथा महानिदेशक होते हैं। इस सेवा के आई०पी०एस० अधिकारी ही ख़ुफ़िया ब्यूरो,  अनुसंधान एव विशलेषण संस्थान, केंद्रीय जाँच ब्यूरो, एवं अपराध अनुसंधान विभाग में भी अपनी सेवाएँ दे सकते हैं।


भारतीय वन सेवा: 

इस सेवा का सृजन 1966 में देश की प्राक्रतिक वन संप्रदा के संवर्धन व संरक्षण हेतु किया गया था। चयनित अभ्यार्थी सहायक वन संरक्षण के पद पर कार्य करते है तथा लगभक चार वर्ष कार्यकाल के पश्चात अधिकारियो को वरिष्ट पद और वेतनमान दिया जाता है। वन महानिदेशक केंद्र में सर्वोच्च पद होता है।


भारतीय राजस्व सेवा: 

यह एक केंद्रीय सेवा है, जहां पर अधिकारियों को वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग के अधीन कार्य करना होता है। इस सेवा की दो शाखाएँ हैं - सीमा शुल्क एवं उत्पाद शुल्क तथा आयकर। इस सेवा में कार्यरत अधिकारी सहायक आयुक्त के पद से शुरुआत  करते हैं, और बाद में मुख्य  आयुक्त के पद पर कार्य करते हैं।


विशिष्ट श्रेणी रेलवे प्रशिक्षु सेवा: 

इस सेवा का आयोजन अंग्रेजों ने 1927 में शुरू किया गया था। यू०पी०एस०सी० प्रत्येक वर्ष सिविल सेवा परीक्षा के माध्यम से इस सेवा में चयनित अभ्यार्थियों को ग्रुप (ए) के पदों पर नियुक्त करता है, सामन्यत: एस०सी०आर०ए० के माध्यम से भी इसमें कई उच्च पदों की नियुक्ति की जाती है, किन्तु अभ्यार्थियों को ग्रुप (बी) से अपनी सेवा की शुरुआत करनी होती है। अभियांत्रकी सेवा के माध्यम से भी यू०पी०एस०सी० रेलवे सेवा में नियुक्तियां करता हैं।


- अब नया पढ़ने का समय नहीं है। जो कुछ अब तक पढ़ा है, उसी में से कोई रुचिकर खंड या अध्याय पढ़कर दोहरा सकते हैं।


- नर्वस होना स्वाभाविक है। अतः इससे ज़्यादा डरें नहीं। तनाव जितना कम हो, उतना बेहतर।


- कई बार हमें ऐसा लगता है, कि पिछले साल भर में जो कुछ पढ़ा है, वह स्मृति से धूमिल हो गया है। ऐसा बिलकुल भी नहीं है। विश्वास कीजिए, जब आप परीक्षा कक्ष में बैठे होंगे, और आपके अध्ययन में से कोई प्रश्न आएगा, तो आपकी स्मृति में वह एकदम उभर आएगा। आप कुछ भी नहीं भूले हैं, सब कुछ मस्तिष्क में सुरक्षित है।


- माना कि प्रतिस्पर्धा बहुत ज़्यादा है। पर लाखों अभ्यर्थियों में से गम्भीर अभ्यर्थियों की संख्या हज़ारों में होती है। इसलिए इतना भी चिंतित होने की ज़रूरत नहीं।


- खाने-पीने का ध्यान रखें। हल्का और सुपाच्य भोजन लें। नींद भी यथासंभव 7 घंटे प्रतिदिन लेने की कोशिश करें।


- प्रारम्भिक परीक्षा देने के बाद एक-दो दिन का ब्रेक लेकर मुख्य परीक्षा की तैयारी में जुट जाएँ।


व्यस्त और मस्त रहें! 

शुभकामना।


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